अध्ययनः. 1 शमूएल 17ः20-32
एक निंदक व्यक्ति या किसी निंदक व्यक्ति का सहयोगी मत बनो
“यदि यहोवा उस समय हमारी ओर न होता जब मनुष्यों ने हम पर चढ़ाई की, ‘‘तो वे हम को उसी समय जीवित निगल जाते”‘ - भजन संहिता 124ः2,3
आज के पाठ में हम दाऊद और उसके बड़े भाई एलीआब के बीच हुई बातचीत के बारे में पढ़ते हैं। जब दाऊद युद्ध स्थल पर गया और उसने पलिश्ती राक्षस गोलियत को देखा, जो इस्राएलियों को डरा रहा था, तो वह बहुत क्रोधित हुआ। उसने जोर देकर और आत्मविश्वास से कहा कि वह व्यक्तिगत रूप से इस खतनारहित पलिश्ती से निपट लेगा। (1 शमूएल 17ः36) खतना इस्राएलियों के लिए सुरक्षा और प्रावधान की परमेश्वर की वाचा का संकेत था। दाऊद जानता था कि गोलियथ की परमेश्वर के साथ ऐसी कोई वाचा नहीं थी, और चूँकि दाऊद प्रभु की वाचा में बहुत सुरक्षित था, वह साहसी और आश्वस्त था कि वह उस दिग्गज को हरा सकेगा। दूसरी ओर, एलीआब में साहस की यह भावना नहीं थी, भले ही वह दाऊद का अपना भाई था, जो उसी परिवार में पैदा हुआ था! एलीआब नाम का अर्थ है, ‘‘परमेश्वर मेरा पिता है,‘‘ और क्या यह एक विडंबना नहीं है कि जिसने ऐसा नाम धारण किया था, वह गोलियथ का सामना करने के बजाय उससे दूर रह रहा था? यहां तक कि उसने दाऊद के आत्मविश्वास और उसके इरादों का भी तिरस्कार किया। दूसरे शब्दों में, वह एक निंदक व्यक्ति था। जो व्यक्ति निंदक होता है वह दूसरों के उद्देश्यों का तिरस्कार करता है। डेबोराह स्मिथ लिखती हैं, ‘‘संदेहवाद जहर की तरह है। यह जहां भी मौजूद है, वहां के वातावरण को जहरीला बना देता है। इसका सहारा लेने से हमारी और दूसरों की आत्मा भी जहरीली हो जाएगी।‘‘
प्रिय दोस्तों, आइए हम दाऊद की तरह बनें जो एलीआब की बातों से किसी भी तरह से हतोत्साहित या भटका नहीं, बल्कि वह लक्ष्य पर दृढ़ था। यदि हम अपने कार्यस्थलों और अपने परिवार के सदस्यों के बीच ‘एलीआब‘ पाते हैं, तो हमें उनकी आलोचनात्मक टिप्पणियों पर ध्यान नहीं देना चाहिए, बल्कि हमें इतना साहसी होना चाहिए कि हम वह कर सकें जो प्रभु ने हमारे लिए निर्धारित किया है।
प्रार्थनाः स्वर्गीय पिता, मेरे शब्द सुशोभित और उपयोगी हो जो दूसरों का निर्माण करने में मदद करें। जब मैं निंदक का सामना करता हूँ, हतोत्साहित या नकारात्मक टिप्पणी से विचलित न होने के लिये मुझे अनुग्रह दें और मुझे सकारात्मक व्यवहार करने के लिये हर परिस्थिति मैं आपको पकड़े रहने दीजिये। यीशु के नाम पर मैं प्रार्थना करता हूँ। आमीन।
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