शुक्रवार, 28 मार्च || आत्मिक अमृत
- Honey Drops for Every Soul
- Mar 28
- 2 min read
अध्ययनः इफिसियों 4ः 29-32
आत्मा को स्वस्थ रखने वाली आदतें विकसित करें
“सब कुछ बिना कुड़कुड़ाए और बिना विवाद के लिया करो, ताकि तुम निर्दोष और भोले बने रहो।”
- फिलिप्पियों 2-14,15
प्लेटो ने कहा, “पहली और सबसे अच्छी जीत खुद पर विजय पाना है।” “हमारे पूरे जीवन में हमारे कार्यस्थलों और हमारे परिवारों में कई चुनौतियाँ और लड़ाइयाँ होंगी, लेकिन सबसे बड़ी चुनौती और लड़ाई खुद से है। हम आत्म-अनुशासन के बिना जीवन में कभी सफलता नहीं पा सकते है। हमारे जीवन में सबसे महत्वपूर्ण पहलुओं में से एक जिसे अनुशासित करने की आवश्यकता है, वह हमारी आत्मा है। इसके लिए, हमें कुछ आत्मा-स्वस्थ आदतें विकसित करने और कुछ आत्मा को नुकसान पहुँचाने वाली आदतों को छोड़ने की आवश्यकता है!’’ मैरी सिम्पसन लिखती हैं। ये आत्मा को नुकसान पहुँचाने वाली आदतें तीन श्रेणियों में आती हैं। पहली, आत्मा को नष्ट करने वाली आदतें है - ईर्ष्या, दूसरों से अपनी तुलना करना और ईर्ष्या कुछ ऐसी आदतें हैं जो हमारी आत्मा को नष्ट कर देंगी। परमेश्वर को धन्यवाद देने की दैनिक आदत को विकसित करें। एक ‘‘धन्यवाद पत्रिका‘‘ शुरू करें और हर दिन परमेश्वर को जो उन्होंने आपको दी है, उसके लिये धन्यवाद की प्रार्थना लिखें। यदि आप ऐसा करते हैं, तो आप देखेंगे कि आपको भरपूर आशीर्वाद मिला है और यह जीवन को देखने के आपके तरीके को बदल देगा।
दूसरी आत्मा को कठोर बनाने वाली आदत है - अपने गुस्से को नियंत्रित न कर पाना, द्वेष रखना और आसानी से नाराज हो जाना हमारी आत्मा को कठोर बना देगा। क्रोध का सबसे बड़ा इलाज देरी करना है। हममें से कई लोगों ने खुद को शांत करने के लिए दस गिनने की सलाह सुनी है। इससे भी बेहतर है कि जब क्रोध बढ़ने लगे, तो हम एक छोटी सी प्रार्थना करें और शांत हो जाएँ। तीसरी, आत्मा को कमजोर करने वाली आदत है - आदतन शिकायत करने और निराशावादी होने से हम अपनी आत्मा को कमजोर करते हैं। नहेम्याह 8ः10 कहता है, ‘‘यहोवा का आनन्द तुम्हारा दृढ़ गढ़ है।‘‘ इस आदत को नष्ट करने का एकमात्र तरीका है कि हम अपनी आत्मा को मजबूत करें और आनंद पर ज्यादा से ज्यादा शास्त्रों को खोजें और उन पर मनन करें ताकि हमारे दिलों से आनंद का झरना फूट पड़े।
प्रार्थनाः सर्वशक्तिमान परमेश्वर, ईर्ष्या के बजाय, मेरा दिल धन्यवाद से भर जाए। जब मैं क्रोधित हो जाऊँ तो मुझे भड़कना नहीं चाहिए और फूट पड़ना नहीं चाहिए, बल्कि प्रार्थना करनी चाहिए और शांत होना चाहिए। जब मैं शिकायत करने लगता हूँ, तो मुझे अपने मन में आपका वचन लाना चाहिए और आनंदित होना चाहिए। मेरे दिल से आनंद का झरना बहने दें। यीशु के नाम पर मैं प्रार्थना करता हूँ। आमीन।
Our Contact:
EL-SHADDAI LITERATURE MINISTRIES TRUST, CHENNAI - 59.
Office: +91 9444456177 || https://www.honeydropsonline.com
Comments