top of page

शुक्रवार, 15 नवंबर आत्मिक अमृत

अध्ययनः भजन संहिता 34ः 1-10


क्या आप परमेश्वर के प्यासे हैं?


““मैं तेरी ओर अपने हाथ फैलाए हुए हूँय सूखी भूमि के समान मैं तेरा प्यासा हूँ।“ - भजन संहिता 143ः6

मैडम गयोन लिखती हैं, ‘‘प्रार्थना हमारे दिलों को परमेश्वर की ओर मोड़ने और बदले में, उनका प्यार प्राप्त करने से ज्यादा कुछ नहीं है।‘‘ पवित्र शास्त्र हमें बिना रुके प्रार्थना करने के लिए कहती है। (1 थिस्सलुनीकियों 5ः17) जिनके पास इच्छा है, उनके लिए लगातार प्रार्थना करना आसान है क्योंकि जब भी हम प्रार्थना में परमेश्वर के पास जाते हैं तो हम पाते हैं कि वे हमारी प्रतीक्षा कर रहे है और हमें उत्तर देने के लिए तैयार है। और इसलिए, यदि हम प्रार्थना में अपने कष्टों और पीड़ा को प्रभु के पास ले जाते हैं, तो हमें निश्चित रूप से आराम मिलेगा। यदि हम बीमार हैं, तो हमारा चंगा होना निश्चित हैय यदि हम गरीब हैं, तो हम निश्चित रूप से धन्य होंगेय यदि हम में बुद्धि की घटी है, तो हम अवश्य बुद्धि से पूरे हो जायेंगे। यह कैसा विशेषाधिकार है!


प्रिय मित्रों, आइए हम इस रहस्य को जानें और इसे अपने जीवन में चखें। आइए हम बच्चों जैसी सरलता और विश्वास के साथ पिता के निकट आएँ। आइए हम अपने हृदय में जो कुछ है, उसे उन पर उंडेल दें। वे हमारी सारी उलझनों को जानते है। वे हमारे सभी दुखों और संघर्षों को समझते है। वे प्रेममय और दयालु है। वे हमें कभी नहीं छोड़ते, लेकिन वे हमें अपनी प्रेमपूर्ण बाहों में गले लगाने के लिए तरसते है। उन्हें खोजने की हमारी इच्छा से अधिक वे हमारे साथ संगति रखने की इच्छा रखते है। उन्हें प्राप्त करने की हमारी इच्छा से कहीं अधिक तत्परता से वे स्वयं को हमें सौंप देना चाहते है। आइए हम इसे एक कर्तव्य या दिनचर्या के रूप में न मानें, बल्कि उनकी आवाज सुनने और उनके साथ संवाद करने की गहरी लालसा के साथ उनकी उपस्थिति में प्रवेश करें। जब हमने परमेश्वर और उनके प्रेम की मिठास का आनंद लिया है, तो हमारे लिए उनके अलावा किसी अन्य चीज पर अपना स्नेह स्थापित करना असंभव होगा। तब हम भजनहार के समान यह भी कहेंगे, ‘‘जैसे हरिणी नदी के जल के लिये हांफती है, वैसे ही, हे परमेश्वर, मैं तेरे लिये हांफता हूँ।‘‘ (भजन संहिता 42ः1) हम दिन-ब-दिन प्रभु के प्रति अपने जुनून को बढ़ते हुए पाएंगे, और हम दाऊद की तरह कह सकेंगे, ‘‘एक वर मैं ने यहोवा से माँगा, उसी के यत्न में लगा रहूँगाय कि मैं जीवन भर यहोवा के भवन में रहने पाऊँ, जिससे यहोवा की मनोहरता पर दृष्टि लगाए रहूँ, और उसके मंदिर में ध्यान किया करूँ।“ (भजन संहिता 27ः4) 

प्रार्थनाः स्वर्ग में मेरे पिता, मैं आपके प्रेम और संगति की मिठास का आनंद लेने के लिए आपकी उपस्थिति में आता हूं। इस दुनिया की कोई भी चीज आपके साथ मेरे समय को बाधित या विचलित न करे। आपके प्रति मेरा जुनून बढ़े, और मैं पल-पल आपकी समानता में परिवर्तित हो जाऊं। यीशु के नाम पर मैं प्रार्थना करता हूँ। आमीन
 
 

Our Contact:

EL-SHADDAI LITERATURE MINISTRIES TRUST, CHENNAI - 59.

Office: +91 9444456177 || https://www.honeydropsonline.com

Comments

Rated 0 out of 5 stars.
No ratings yet

Add a rating
bottom of page