शनिवार, 29 मार्च || आत्मिक अमृत
- Honey Drops for Every Soul
- Mar 29
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अध्ययनः यूहन्ना 5ः 31-41
यीशु ने मनुष्यों से प्रशंसा स्वीकार नहीं की
“... यदि मैं आप अपनी महिमा करूँ, तो मेरी महिमा कुछ नहींय परंतुअ मेरी महिमा करनेवाला मेरा पिता है, ” - यूहन्ना 8ः 54
यद्यपि यीशु परमेश्वर के पुत्र थे, फिर भी उन्होंने अपने लिए कोई सम्मान नहीं लिया, बल्कि उन्होंने अपने स्वर्गीय पिता को सारा सम्मान दिया। उन्होंने एक बार भी अपनी उपलब्धियों का घमंड नहीं किया, न ही वे मनुष्यों से प्रशंसा स्वीकार करने के लिए उत्सुक थे। (यूहन्ना 5ः41) उन्होंने यूहन्ना 5ः34 में कहा कि उन्हें लोगों की गवाही की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि वे उन पर भरोसा नहीं करते थे। वे जानते थे कि उनके मन में क्या है। अपने पिता का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा, “एक और है जो मेरी गवाही देता है, और मैं जानता हूँ कि मेरी जो गवाही वह देता है, वह सच्ची है।”
यूहन्ना 5ः36 में यीशु ने कहा, ‘‘क्योंकि जो काम पिता ने मुझे पूरा करने को सौंपा है अर्थात यहीं काम जो मैं करता हूँ, वे मेरे गवाह हैं कि पिता ने मुझे भेजा है।“ उनका लक्ष्य केवल अपने पिता को प्रसन्न करना और उनकी इच्छा पूरी करना था, और वे इससे जरा भी विचलित नहीं हुए। यूहन्ना 7ः4 में यीशु के भाइयों ने उनसे कहा, ‘‘क्योंकि ऐसा कोई न होगा जो प्रसिद्ध होना चाहे, और छिपकर काम करें। यदि तू यह काम करता है, तो अपने आप को जगत पर प्रगट कर।“ लेकिन, यीशु कभी भी उनके प्रलोभन में नहीं आए। यहाँ तक कि जिन लोगों ने उनके द्वारा किए गए चमत्कारी चिह्नों को देखा, वे उन्हें बलपूर्वक राजा बनाना चाहते थे, लेकिन वे पीछे हटे और वे अकेले ही पहाड़ पर चले गए। (यूहन्ना 6ः14,15)
प्यारे दोस्तों, आइए हम अपने प्रभु के उदाहरण का अनुसरण करें। हमें लोगों द्वारा प्रशंसा पाने की इच्छा नहीं करनी चाहिए, बल्कि इस तरह से जीना चाहिए कि हमें प्रभुओं के प्रभु से बड़ा इनाम मिले!
प्रार्थनाः प्रिय प्रभु, मेरी मदद करें कि मैं आप से ज्यादा लोगों की प्रशंसा या स्वीकृति न चाहूँ। जब लोग मेरे द्वारा किए गए अच्छे काम को स्वीकार करने में विफल होते हैं, तो मुझे इसके बारे में बड़ा बवाल मचाने से रोकने में मदद करें। क्योंकि आप ही हैं जो मुझे पुरस्कृत करते हैं। यीशु के नाम में मैं प्रार्थना करता हूँ। आमीन।
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