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शनिवार, 09 नवंबर आत्मिक अमृत

अध्ययनः लूका 13ः 22-30


‘‘प्रवेश नहीं‘‘ कहने से पहले प्रवेश करें

‘“सकेत द्वार से प्रवेश करने का यत्न करो” (लूका 13ः24)


‘“सकेत द्वार से प्रवेश करने का यत्न करो” (लूका 13ः24)

यहाँ ‘‘यत्न‘‘ शब्द का अर्थ संघर्ष, कुश्ती, तनाव है। यीशु कहते हैं कि हमें स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करने के लिए यत्न करना होगा, हर संभव प्रयास करना होगा। यीशु हमसे किसके विरुद्ध प्रयास करना चाहते हैं? जब तक हम यीशु को आमने-सामने नहीं देखते हैं, हमारे अडिग, जिद्दी, शक्तिशाली और चतुर दुश्मन जिनके साथ हमें लड़ने की जरूरत है वे दुनिया, मांस और शैतान हैं। यीशु ने आदेश दिया है कि हमें जागते रहना चाहिए, सतर्क रहना चाहिए और तैयार रहना चाहिए, क्योंकि जीवन के प्रलोभन हमें विचलित कर देते हैं, और यदि हम प्रबल नहीं हुए तो हम पराजित और बर्बाद हो जाएंगे। यह एक सतत प्रयास होना चाहिए, ऐसा प्रयास जो किसी की जीवनशैली, उसके अभ्यस्त अभ्यास के रूप में प्रमाणित होना चाहिये। दूसरे शब्दों में, हमें कभी भी अपनी सतर्कता में कमी नहीं आने देना चाहिए (मत्ती 26ः41) क्योंकि हमारे नश्वर शत्रु कभी हथियार नहीं नीचे डालते है।


प्रिय मित्रों, हम ध्यान रखें - दरवाजा संकीर्ण हैय यह किसी आत्म-धार्मिकता, किसी सांसारिक महिमा, किसी सम्मान की अनुमति नहीं देता है। आइये हम ध्यान दें। दरवाजा अभी खुला है, लेकिन एक दिन बंद हो जाएगा और प्रवेश के प्रयास असफल हो जाएंगे। हमें आगे बढ़ने का प्रयास करना चाहिए। हमारी आत्मा के शत्रु अनेक हैं। केवल ‘‘दरवाजे‘‘ के बारे में उपदेश सुनना ही पर्याप्त नहीं है। हमें इसमें प्रवेश करना चाहिए। पश्चाताप और मसीह में विश्वास के उपदेश से हमें तब तक कोई लाभ नहीं होता है जब तक वे हमारे हृदयों को प्रेरित न करते हैं। आज यदि हम उनकी वाणी सुनें, तो आइए हम अपने हृदय को कठोर न करें। देरी घातक हो सकती है। जब मालिक दरवाजा बंद कर देता है, तो हमारी आत्मा को स्वर्ग के राज्य और परमेश्वर की उपस्थिति में प्रवेश करने से हमेशा के लिए रोक दिया जायेहा। दया का द्वार अनिश्चित काल तक खुला नहीं रहेगा। 

प्रार्थनाः प्रिय प्रभु, मुझे हर दिन संकीर्ण दरवाजे से प्रवेश करने के लिए सभी प्रयास करने दीजिए। मुझे सतर्क रहने दीजिये और नश्वर शत्रुओं - संसार, देह और शैतान - से लड़ने दीजिये। इससे पहले कि दरवाजा बंद हो जाए और मेरा अंदर प्रवेश वर्जित हो जाए, मैं विचलित न होऊं बल्कि आगे बढ़ जाऊं। आमीन
 
 

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