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रविवार, 13 अप्रैल || पूरे दिल से आज्ञाकारिता रखें


आत्मिक अमृत अध्ययनः यूहन्ना 2ः1-10



‘ “जो कुछ वह तुम से कहे, वही करना।”‘ - यूहन्ना 2ः5


काना की शादी में नौकरों के लिए यह एक गंभीर परीक्षा थी, घर के प्रवेश द्वार पर खड़े उन बड़े जार को भरना आज्ञाकारिता और विश्वास की परीक्षा थी। प्रत्येक में लगभग 20 गैलन होंगे और उन्हें भरना एक लंबा, कठिन काम हुआ होगा। परन्तु उन्होंने उसे पूरा भर दिया। हमारे लिए क्या अनुकरणीय उदाहरण है! हमें सदैव परमेश्वर को आज्ञाकारिता का पूर्ण माप देने की आवश्यकता है। वे हमसे बहुत छोटे-छोटे काम करने के लिए कह सकते है - किसी बीमार से मिलने जाना, या अकेले लोगों को सांत्वना देने के लिए एक शब्द बोलना, जरूरतमंदों की मदद करना, एक गिलास ठंडा पानी देना। जब प्रभु हमें अपने साथ सहभागी बनने के लिए बुलाते हैं, तो आइए सुनिश्चित करें कि हम यह न कहें, ‘‘कृपया प्रभु, मैं नहीं कर सकता हूँ!‘‘ लेकिन हमारी प्रतिक्रिया हार्दिक और पूर्ण होनी चाहिए। क्या यह आश्चर्यजनक नहीं है कि वे, प्रभु और स्वामी, हमारी सहायता मांगते हैं? परमेश्वर के पुत्र इन सेवकों की सहायता के बिना आवश्यक सारी शराब की आपूर्ति कर सकते थे, उन्हें उनकी आवश्यकता नहीं थी! लेकिन सेवक परमेश्वर के साधन होने के धन्य लाभ से चूक गए होंगे, क्योंकि वे चुने हुए लोग थे जिनके द्वारा परमेश्वर के पुत्र ने विवाह भोज में अलौकिक कार्य किया था।


प्रिय मित्रों, बिना हमारी कमजोरी में उनकी कृपा जोड़े, जिससे कार्य पूर्ण हो जाए, प्रभु कभी भी हमसे अपने लिए एक छोटा सा कार्य करने के लिए नहीं कहते हैं। तो आइए हम जो कुछ भी वह हमसे कहें उसे करने में संकोच न करें। हमारी आज्ञाकारिता संपूर्ण हो, विशिष्ट हो - उसके समान या उसके समकक्ष कुछ नहीं, बल्कि विशिष्ट हो। इसे हमारे करियर, हमारी शादी और हमारे पूरे जीवन में हमारी पसंद के लिए हमारा शासकीय आदर्श वाक्य बनने दें।

प्रार्थनाः प्रिय प्रभु, मुझे वह करने में सक्षम करें जो मैं करना पसंद नहीं बल्कि जो मुझे करना है। छोटी-छोटी चीजों में वफादार रहने और आपकी आज्ञाकारिता और विश्वास का सबक सीखने में मेरी मदद करें। मैं आधे-अधूरे मन से न रहूँ, बल्कि आपके प्रति मेरी आज्ञाकारिता हार्दिक और पूर्ण हो। इसे मेरे जीवन का आदर्श वाक्य बनने दो। आमीन
 
 

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