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रविवार, 10 नवंबर आत्मिक अमृत

अध्ययनः लूका 14ः1-6


हमेशा जांच के अधीन


“और वे उसकी घात में थे।“ (लूका 14ः1)

अपने पूरे सांसारिक धर्म प्रचार कार्य के दौरान प्रभु को लगातार इस स्थिति का सामना करना पड़ा - उनके दुश्मन लगातार उन्हें देख रहे थे जैसे एक बाज अपने शिकार को देखता है। उनकी बुरी नजर लगातार उन पर बनी रही थी। वे उत्सुकता से किसी शब्द या कार्य की प्रतीक्षा कर रहे थे जिसके आधार पर वे आरोप लगा सकते थे। फिर भी उन्हें कुछ नहीं मिला। हमारे प्रभु सदैव पवित्र, निष्कलंक और निर्दोष थे। उनका जीवन वास्तव में उत्तम रहा होगा, जिसमें सबसे कट्टर शत्रु को भी कोई दोष, कोई कलंक नहीं मिल सका। जे.सी. राइल लिखते हैं, “जो ईसा मसीह की सेवा करना चाहता है, उसे अपने गुरु से कम नहीं होना चाहिए। उसे यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि दुनिया की निगाहें उस पर हैं, और दुष्ट उसकी हर चाल पर नजर रख रहे हैं। यह बात उसे विशेष रूप से तब याद रखनी चाहिए जब वह अविचलित समाज के बीच जाता है। यदि वह यहां शब्द या कार्य में थोड़ी सी चूक करता है तो वह निश्चिंत हो सकता है कि इसे भुलाया नहीं जाएगा।“


प्रिय मित्रों, नीतिवचन 15ः3 कहता है, ‘‘यहोवा की आँखें सब स्थानों में लगी रहती हैं, वह बुरे भले दोनों को देखती रहती है।‘‘ आइए हम प्रतिदिन पवित्र परमेश्वर की दृष्टि में जीवन जीने का प्रयास करें। अगर हम ऐसे ही जियें, तो इससे कोई फर्क नहीं पड़ेगा कि दुष्ट दुनिया हम पर कितनी ‘‘नजर‘‘ रखती है। हम दानिय्येल 6ः5 में पढ़ते हैं कि दानिय्येल के शत्रु क्या स्वीकार करने के लिए बाध्य थे, ‘‘हम उस दानिय्येल के परमेश्वर की व्यवस्था को छोड़, और किसी विषय में उसके विरुद्ध कोई दोष न पा सकेंगे।‘‘ आइए हम ऐसा विवेक रखने का प्रयास करें जिसमें परमेश्वर और मनुष्य के प्रति कोई अपराध न हो, और ऐसा कुछ न करें जिससे प्रभु के शत्रुओं को ईशनिंदा करने का अवसर मिले। प्रभु हमें हर पहलू में यीशु की तरह जीने में सक्षम बनाएं। 

प्रार्थनाः प्रिय प्रभु, मेरे आस-पड़ोस में, मेरे कार्यालय में और यहाँ तक कि मेरी छुट्टियों में भी एक अज्ञात दुनिया मुझ पर लगातार नजर रखती है। मुझे वैसे ही जीने में मदद करें जैसे आप जीये - निर्दोष - अपने शत्रुओं को मुझ पर किसी भी प्रकार का घृणित आरोप लगाने का अवसर न दें। अपनी आत्मा से मुझे दृढ़ करो। आमीन
 
 

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