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मंगलवार, 24 दिसंबर || आत्मिक अमृत

अध्ययनः यशायाह 9ः6-7


यीशु, आप कितने अद्भुत हैं!


और उसका नाम अद्भुत युक्ति करनेवाला पराक्रमी परमेश्वर, अनन्तकाल का पिता, और शान्ति का राजकुमार रखा जाएगा।“ - यशायाह 9ः6

एड्रियन रोजर्स लिखते हैं, “मैंने एक उपदेशक के बारे में सुना जो ट्रेन में था और उसने एक आदमी को खिड़की से बाहर देखते हुए देखा। और जब वे एक खूबसूरत परिदृश्य से गुजरे, तो वह आदमी कहता रहा, “अद्भुत! आश्चर्यजनक!‘‘ वह कुछ देर रुककर देखता, अपनी आँखों से आँसू पोंछता और फिर कहता, ‘‘अद्भुत!‘‘ उपदेशक की जिज्ञासा जगी और उसने उस आदमी से पूछा, “मैंने कभी किसी को ट्रेन की सवारी का इतना आनंद लेते नहीं देखा। क्या आप मुझे बता सकते हैं कि यह इतना अद्भुत क्यों है?  उस आदमी ने कहा, “मेरी अभी सर्जरी हुई है। मैं कई वर्षों से दृष्टिहीन था, और अब मैं वे चीजें देख रहा हूं जिन्हें मैं लंबे समय से भूला हुआ थाय मैं नीला आकाश, हरी घास, चमकीले फूल देख सकता हूँ,‘‘ और उसने कहा, ‘‘यह कितना अद्भुत है!‘‘ 


यशायाह ने अपनी मसीहाई भविष्यवाणी में यीशु मसीह को ‘‘अद्भुत‘‘ कहा है। (यशायाह 9ः6) यीशु अपने नाम के कितने योग्य थे - ‘‘अद्भुत।‘‘ उनके बारे में सब कुछ अद्भुत है - उनका जन्म अद्भुत है, उनका जीवन अद्भुत है, उनके कार्य अद्भुत हैं, उनके शब्द अद्भुत हैं। वे शिक्षण में अद्भुत थे जिसे दुनिया के महानतम विद्वानों ने कभी पार नहीं किया। उनकी मृत्यु अद्भुत है, उनका पुनरुत्थान अद्भुत है, उनका स्वर्गारोहण अद्भुत है, उनका दूसरा आगमन अद्भुत है। प्रिय मित्रों, क्या हम यीशु मसीह के नाम से भयभीत हैं? या क्या हम ठंडे और उदासीन हो गये हैं? जब हम यीशु के नाम के बारे में सोचते हैं तो क्या हम उत्साहित हो जाते हैं? यदि यीशु हमारे लिए अद्भुत नहीं है, तो हमारी आत्माएँ कठोर हो गई हैं और हमारी आध्यात्मिक आँखें अंधी हो गई हैंय हमें अपनी आध्यात्मिक दृष्टि से कुछ करने की आवश्यकता है। जब हम यीशु को अपने उद्धारकर्ता के रूप में जानेंगे, तो हमारे दैनिक अस्तित्व का प्रत्येक तंतु और प्रत्येक घटना आश्चर्य से भर जाएगी, क्योंकि वह अद्भुत है। 

प्रार्थनाः प्रिय प्रभु, मुझे लगातार आपके जन्म, जीवन, शिक्षाओं, मृत्यु, पुनरुत्थान और आपके दूसरे आगमन के बारे में सोचने दें। मेरी आत्मा को आग लगा दो, और मुझे आपकी उपस्थिति में विस्मय खड़े होकर यह कहते रहने दो, ‘‘हे प्रभु, आप मेरे लिए कितने अद्भुत हैं!‘‘ और अपने सम्पूर्ण अस्तित्व से आपकी आराधना करते रहने दो। आमीन
 
 

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