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मंगलवार, 15 अप्रैल || सच्चा आनंद कहाँ मिलता है? केवल प्रभु में


आत्मिक अमृत अध्ययनः फिलिप्पियों 4ः1-9



‘प्रभु में सदा आनन्दित रहोय मैं फिर कहता हूँ, आनन्दित रहो। ‘ - फिलिप्पियों 4ः4


खुशी और आनन्द फिलिप्पियों की इस पुस्तक के उपविषय हैं। पौलुस ने यह पत्र जेल से लिखा था। उन्होंने अपनी आजादी और स्वतंत्रता खो दी थी। और फिर भी हम इस पुस्तक को हाइलाइटर या लाल पेंसिल से पढ़ सकते हैं और सभी अध्यायों में खुशी और आनंद के शब्दों को बार-बार चिह्नित कर सकते हैं। पौलुस की ख़ुशी और आनंद, प्रभु यीशु के साथ उनके रिश्ते पर आधारित थी, जिसे कुछ भी उनसे छीन नहीं सकता था। इसलिए उन्होंने कहा, ‘‘प्रभु में सदा आनन्दित रहो।‘‘ प्रसन्नता निराशा, अवसाद और विभाजन के लिए एक महान औषधि है। प्रभु जो आनंद प्रदान करते हैं वे हमें कष्टों और परीक्षणों का सामना करने के लिए पर्याप्त शक्ति देते है। ‘‘आनन्द‘‘ के पीछे का अर्थ एक छोटे से मेमने द्वारा खुशी से उछलते हुए चित्रित किया गया है और यह किसी के चेहरे में एक स्पष्ट बदलाव का वर्णन करता है, इसलिए यह कुछ ऐसा नहीं है जिसे हम नकली बना सकते हैं। यह आत्मा का फल है जो हमारे आस-पास के लोगों के भीतर से प्रसारित होता है। एड्रियन रोजर्स लिखते हैं, ‘‘प्रत्येक ईसाई को एक सचेत खुशी, एक निरंतर खुशी, एक विशिष्ट खुशी और एक संक्रामक खुशी होगी, अगर वह प्रभु में अपना आनंद पाता है!‘‘


प्रिय मित्रों, जब हम परमेश्वर की उपस्थिति का अभ्यास करते हैं, जब हमें एहसास होता है कि वे हमेशा हमारे साथ है, (इब्रानियों 13ः5-6) चाहे हम किसी भी परिस्थिति में हों, हम आनन्दित होंगे। पौलुस ने यही कहा - ‘‘उन्होंने मुझे बंद कर दिया है, लेकिन वे यीशु को बंद नहीं कर सकते है।‘‘ “प्रभु में सदा आनन्दित रहो। प्रभु हाथ में हैं।”तो आइए हम आनन्द मनाएँ। परिस्थितियाँ बदलती हैं। लेकिन वे कभी नहीं बदलते हैं। आइए हम प्रभु को अपने सामने रखें, उन पर विचार करें, उनका मनन करें, उनकी स्तुति करें, उनसे प्रेम करें और उनमें आनंद मनाएँ। प्रभु का आनंद हमारी ताकत है।

प्रार्थनाः प्रिय प्रभु, गुलाब के कांटों के बारे में शिकायत करने के बजाय, मुझे कांटों के बीच गुलाब के लिए आभारी होना चाहिए। मेरी खुशी न तो परिस्थितियों पर आधारित हो, न ही किसी संपत्ति पर, यहां तक कि स्वयं पर भी नहीं, क्योंकि ये सब अस्थायी हैं। परन्तु मुझे आपके उस अटल प्रेम से, जो अनन्त है, उस पर आनन्दित होने दे। आमीन
 
 

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