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मंगलवार, 12 नवंबर आत्मिक अमृत

अध्ययनः भजन संहिता 100ः1-5


क्या हम कलीसिया जाने के इच्छुक हैं?


“और एक दूसरे के साथ इकट्ठा होना न छोड़ें, जैसे कि कितनों की रीति है, पर एक दूसरे को समझाते रहेंय” (इब्रानियों 10ः25)

कई ईसाई कलीसिया सभाओं में शामिल न होने के लिए एक से अधिक बहाने ढूंढते हैं, सबसे आम कारण यह बताया जाता है, ‘‘सभी ईसाई पाखंडी हैं - वे कलीसिया के अंदर धार्मिक रूप से गाते हैं, प्रार्थना करते हैं और बात करते हैं, लेकिन अपने जीवन में वे वो प्रदर्शित नहीं करते हैं जो वे बात करते हैं। परमेश्वर हर जगह हैं, यहां तक कि मेरे घर में भी है। तो क्यों न मैं अपने घर की चार दीवार के भीतर उनके साथ प्रार्थना का समय बिताऊं?‘‘ प्रिय दोस्तों, ऊपर उद्धृत कारण तर्क के लिए कुछ हद तक सही हो सकता है, लेकिन परमेश्वर का वचन स्पष्ट रूप से निर्देश देता है कि ईसाई होने के नाते हमें नियमित रूप से एक-दूसरे के साथ संगति रखनी चाहिए। इसके द्वारा हम एक दूसरे के प्रति अपने ईसाई प्रेम को अधिक व्यक्तिगत तरीके से प्रदर्शित कर सकते हैं। हम एक-दूसरे को प्रोत्साहित कर सकते हैं और एक-दूसरे का विश्वास बढ़ा सकते हैं। एक-दूसरे के साथ मेलजोल हमें प्रेमपूर्वक एक-दूसरे की सेवा करने का मौका भी देता है। यदि हम कलीसिया जाने और विश्वासियों की संगति की उपेक्षा करते हैं, तो हम आत्म-केंद्रित हो जायेंगे।


1 कुरिन्थियों 12 में, पौलुस विश्वासियों के बीच संबंधों की तुलना मानव शरीर के विभिन्न अंगों के कार्यों से करते है। ‘‘यदि एक अंग को कष्ट होता है, तो हर अंग को उस के साथ कष्ट होता है, और यदि एक अंग को सम्मान मिलता है, तो सभी अंग उससे आनन्दित होते हैं।‘‘ यह प्रत्येक ईसाई का दृष्टिकोण होना चाहिए। तो आइए हम दूसरों की आलोचना और निंदा न करें। इसके बजाय, आइए हम पवित्र आत्मा से हमारे दिलों को भाईचारे के प्यार से भरने के लिए कहें। कोई भी एकदम सही नहीं होता है। हममें से प्रत्येक में कुछ न कुछ दोष है। इसलिए, आइए हम दूसरों की गलतियों को बड़ा न करें, बल्कि उन्हें प्रभु के चरणों में रखें और उनके लिए प्रार्थना करें। आइए हम यह ध्यान रखें कि कलीसिया प्रभु का निवास स्थान है।और इसलिए आइए हम वहां पवित्रता और सच्चाई से उनकी आराधना करने की सच्चे दिल से इच्छा करें। आइए हम भजनहार के साथ कहें, ‘‘हे सेनाओं के यहोवा, तेरे निवास क्या ही प्रिय है! मेरा प्राण यहोवा के आँगनों की अभिलाषा करते करते मूर्चि्छत हो चला३क्योंकि तेरे आँगनों में का एक दिन और कहीं के हजार दिन से उत्तम है।“ (भजन संहिता 84ः1,2,10) आइए हम आज्ञाकारिता के इस सरल कार्य के माध्यम से प्रभु के नाम की महिमा करें। 

प्रार्थनाः प्रेमी पिता, विश्वासियों की संगति की उपेक्षा न करने में मेरी सहायता करें जिससे मेरा आध्यात्मिक विकास ख़राब हो जाएगा। मेरा इरादा पवित्र स्थान में अकेले आपकी पूजा करने का हो, और दूसरों का न्याय करने या दूसरों के बारे में गपशप करने का नहीं हो। मुझे नियमित कलीसिया जानेवाला बनने में मदद करें। यीशु के नाम पर मैं प्रार्थना करता हूँ। आमीन
 
 

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