अध्ययनः इफिसियों 5ः1-14
हे प्रभु, मैं आपके समान पवित्र बनना चाहता हूँ!
“क्योंकि परमेश्वर ने हमें अशुद्ध होने के लिये नहीं, परन्तु पवित्र होने के लिये बुलाया है।“ - 1 थिस्सलुनिकियों 4ः7
आर.ए.टोरे लिखते हैं, ‘‘पवित्रता यीशु मसीह का पहला और प्रमुख गुण है जो परमेश्वर के वचन में प्रकट होता है।‘‘ हाँ, हम कह सकते हैं कि मसीह प्रेममय है, वे सौम्य और दयालु है, वे नम्र, विनम्र और प्रार्थनापूर्ण है। लेकिन सबसे बढ़कर वे ‘‘पवित्र‘‘ है। ‘‘पवित्र‘‘ का अर्थ नैतिक अशुद्धता या दोष से पूर्णतया मुक्त होना है। पवित्र शास्त्र कहता है कि यीशु ज्योति हैं और उनमें अंधकार बिल्कुल भी नहीं है। उनके जीवन में पवित्रता अनेक रूपों में प्रकट हुई। उन्होंने बिल्कुल पापरहित जीवन जीया। वे सदैव धार्मिकता से प्रेम करते थे और दुष्टता से घृणा करते थे। (इब्रानियों 1ः9) इस संसार में बहुत से ‘‘संत‘‘ रहते हैं, जो धार्मिकता से प्रेम करने का दावा करते हैं, परन्तु वे अधर्म से घृणा नहीं करते है। ऐसे लोग भी हैं जो पाप से घृणा करने का दावा करते हैं, परन्तु धार्मिकता से प्रेम नहीं करते हैं। परन्तु मसीह की पवित्रता, हमारे प्रभु बेदाग है - वे धार्मिकता से प्रेम करते थे और पाप से घृणा करते थे। इसके बाद, उनकी पवित्रता उनके शब्दों और कार्यों दोनों में प्रकट हुई। 1 पतरस 2ः22 कहता है, ‘‘न तो उसने पाप किया और न उसके मुँह से छल की कोई बात निकली।‘‘ आज जो लोग पवित्रता के बारे में इतनी बातें करते हैं, वे अपने कार्यों में बहुत अपवित्र हैं। पवित्रता की पूर्ण अभिव्यक्ति केवल कुछ भी गलत न करने में शामिल नहीं है, बल्कि वह सब करने में है जो सही है और वह सब कहने में है जो सत्य है।
प्रिय मित्रों, हमारे प्रभु हम, उनके शिष्यों से पूर्ण पूर्णता की मांग करते हैं। मत्ती 5ः48 में, वे कहते है, ‘‘इसलिए चाहिये कि तुम सिद्ध बनो, जैसा तुम्हारा स्वर्गीय पिता सिद्ध है।‘‘ क्योंकि यीशु पूर्णतः पवित्र थे, वे हममें पूर्ण पवित्रता से कम किसी भी चीज से संतुष्ट नहीं हो सकते थे। उन्होंने यहां तक कहा, ‘‘यदि तेरी दाहिनी आँख तुझे ठोकर खिलाए, तो उसे निकालकर फेंक देय क्योंकि तेरे लिए यही भला है कि तेरे अंगों में से एक नष्ट हो जाए और तेरा सारा शरीर नरक में न डाला जाए।‘‘ (मत्ती 5ः29) आइए हम यह कहकर अपने आप को धोखा न दें कि यीशु द्वारा निर्धारित मानक बहुत ऊँचा है और इसे प्राप्त नहीं किया जा सकता है, लेकिन आइए हम पवित्र आत्मा की शक्ति से दुनिया के साथ समझौता न करने का संकल्प लें। आइए हम हर पल अपने विचारों, शब्दों और कार्यों में पवित्रता का अनुसरण करें।
प्रार्थनाः प्रिय प्रभु, देवदूत दिन-रात आपकी आराधना करते हैं और कहते हैं, ‘‘पवित्र, पवित्र, पवित्र सेनाओं का प्रभु है,‘‘ और राक्षस आपकी पवित्रता के सामने खड़े होने से कांपते हैं। आप परम पवित्र परमेश्वर हैं जो मेरे जीवन में भी पवित्रता चाहते हैं। मेरे जीवन के सभी दिनों में पवित्रता का अनुसरण करने में मेरी सहायता करें। यीशु के नाम पर मैं प्रार्थना करता हूँ। आमीन।
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