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डर को विश्वास से बदलें गुरुवार, 03 अक्टूबर

आत्मिक अमृत


अध्ययनः नहेम्याह 2ः 1-5


परमेश्वर मेरा उद्धार है, मैं भरोसा रखूँगा और न थरथराऊँगाय क्योंकि प्रभु यहोवा मेरा बल और मेरे भजन का विषय है, और वह मेरा उद्धारकर्ता हो गया है।” (यशायाह 12ः2)


नहेम्याह ने राजा अर्तक्षत्र से कहा कि वह ‘‘बहुत भयभीत‘‘ था जिसका अनुवाद किया जा सकता है, ‘‘एक भयानक भय मुझ पर छा गया।‘‘ वह क्यों डर रहा था? संभवतः दो कारणों से - पहला, उसका चेहरा उदास था और वह जानता था कि राजा की उपस्थिति में उससे पूरी तरह संतुष्ट होने की उम्मीद की जाती है। जो प्रजा राजा के आसपास दुखी या उदास रहती थी उसे आमतौर पर कड़ी सजा मिलती थी। दूसरा, वह फारसी राजा से यरूशलेम की शहर की दीवार के पुनर्निर्माण करने की अनुमति माँगने वाला था, एक ऐसा अनुरोध जिससे राजा का गुस्सा भड़क सकता था और परिणामस्वरूप उसे फाँसी दी जा सकती थी। लेकिन, सौभाग्य से नहेम्याह का विश्वास उसके डर से बड़ा था। उसे परमेश्वर के वादों पर विश्वास था और इसलिए उसने साहसपूर्वक काम किया। डर ने उसे पंगु बनाने के बजाय उसे कार्रवाई के लिए प्रेरित किया। महीनों की प्रार्थना ने उसे इन महत्वपूर्ण क्षणों के लिए तैयार किया था। जब राजा ने उससे पूछा, “तुम्हारा चेहरा उदास क्यों है?” नहेमायाह ने राजा को अपने देश जाने की इच्छा बताई। नहेम्याह इतना समझदार था कि उसने यरूशलेम का नाम नहीं लिया। उसने सोचा होगा कि यरूशलेम का इतिहास और प्रतिष्ठा राजा पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकती है। इसलिए उसने निजी रास्ता चुना।


प्रिय मित्रों, क्या आप आज किसी बात से डरे हुए हैं? क्या आप अतीत की कुछ घटनाओं से डरते हैं, या आप वर्तमान को लेकर भयभीत हैं या भविष्य में क्या होगा? याद रखें, डर अक्सर हमें वो कदम उठाने से रोकता है जिनके बारे में हम जानते हैं कि हमें उठाने की जरूरत है। डर हमें पंगु बना सकता है। इसलिए अपने डर को परमेश्वर के वादों पर विश्वास से बदलों। उन पर विश्वास करो, उन पर भरोसा करो और आगे बढ़ो। परमेश्वर आपको मनुष्यों की दृष्टि में अनुग्रह प्रदान करेंगे और आपकों सफलता प्रदान करेंगे।


प्रार्थनाः प्रिय प्रभु, जब स्थिति भयावह हो, तो मुझे अपना विश्वास आप पर टिकाने दीजिए। मैं डर से स्तब्ध न हो जाऊं बल्कि स्थिति को संभालने के लिए आप पर भरोसा रखूं। मुझे अपनी बुद्धि से भरें ताकि मैं सही दृष्टिकोण अपनाऊं और विजयी होकर बाहर आऊं। आमीन




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